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द्यौ॒३॒॑ष्पितः॒ पृथि॑वि॒ मात॒रध्रु॒गग्ने॑ भ्रातर्वसवो मृ॒ळता॑ नः। विश्व॑ आदित्या अदिते स॒जोषा॑ अ॒स्मभ्यं॒ शर्म॑ बहु॒लं वि य॑न्त ॥५॥

English Transliteration

dyauṣ pitaḥ pṛthivi mātar adhrug agne bhrātar vasavo mṛḻatā naḥ | viśva ādityā adite sajoṣā asmabhyaṁ śarma bahulaṁ vi yanta ||

Pad Path

द्यौः॑। पितः॑। पृ॒थि॑वि। मातः॑। अध्रु॑क्। अग्ने॑। भ्रा॒तः॒। व॒स॒वः॒। मृ॒ळत॑। नः॒। विश्वे॑। आ॒दि॒त्याः॒। अ॒दि॒ते॒। स॒ऽजोषाः॑। अ॒स्मभ्य॑म्। शर्म॑। ब॒हु॒लम्। वि। य॒न्त॒ ॥५॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:51» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:11» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पित्रादिकों को सन्तानों के लिये क्या करना योग्य है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (पितः) पालनेवाले (द्यौः) सूर्य्य के समान ! तुम हे (मातः) माता (पृथिवि) भूमि के समान ! तुम हे (अग्ने) अग्नि के समान प्रकाशात्मा (भ्रातः) भ्राता ! तुम (अध्रुक्) द्रोहरहित होते हुए (वसवः) सुख वास के देनेवाले तुम सब (नः) हमको (मृळता) सुखी करो हे (अदिते) अखण्डिते ज्ञान और ऐश्वर्य्यवती पण्डिता स्त्री ! जैसे (विश्वे) सब (आदित्याः) पूर्ण की है ब्रह्मचर्य्य से विद्या जिन्होंने वे सज्जन (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (बहुलम्) बहुत पदार्थयुक्त (शर्म) सुख करनेवाले घर को (वि, यन्त) देते हैं, वैसे (सजोषाः) समान एकसी प्रीति को सेवनेवाली तू बहुत सुख और विद्या को दे ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जिनका सूर्य के समान सुन्दर शिक्षा से पालनेवाला पिता, पृथिवी के समान सहनशीलता आदि गुण और विद्यायुक्त माता, अग्नि के समान प्रकाशमान भ्राता वर्त्तमान है, वही सुखी होता है तथा जिसे पूर्ण विद्यावान् जन सन्मार्ग को पूँछते =देते हैं, वैसे ही विद्या पढ़नेवाले पढ़ानेवालों का निरन्तर सत्कार करते हैं ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पित्रादिभिः सन्तानेभ्यः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे पितर्द्यौरिव ! त्वं हे मातः पृथिवि भूमिरिव ! त्वं हे अग्ने ! अग्निरिव भ्रातस्त्वमध्रुक्सन् वसवो यूयं नो मृळता। हे अदिते ! यथा विश्व आदित्या अस्मभ्यं बहुलं शर्म वि यन्त तथा सजोषास्त्वं बहुसुखं विद्यां च देहि ॥५॥

Word-Meaning: - (द्यौः) सूर्य्य इव (पितः) पालक (पृथिवि) भूमिरिव (मातः) जननि (अध्रुक्) द्रोहरहितः (अग्ने) पावकवत् प्रकाशात्मन् (भ्रातः) बन्धो (वसवः) सुखवासप्रदाः (मृळता) सुखयत। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (नः) अस्मान् (विश्वे) सर्वे (आदित्याः) पूर्णकृतब्रह्मचर्यविद्याः (अदिते) अखण्डितज्ञानैश्वर्य्ये (सजोषाः) समानप्रीतिसेविका (अस्मभ्यम्) (शर्म) सुखकारणं गृहम् (बहुलम्) बहुपदार्थान्वितम् (वि) (यन्त) ददति ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। येषां सूर्य्यवत्सुशिक्षया पालकः पिता पृथिवीवत् क्षमादिविद्यागुणान्विता माताऽग्निवद्भ्राता वर्त्तते स एव सुखी जायते यथा पूर्णविद्यावन्तो जना अयनविद्यां प्रयच्छन्ति तथैव विद्याग्रहीतारोऽध्यापकान्त्सततं सत्कुर्वन्ति ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्याचा सूर्याप्रमाणे सुशिक्षित पालक पिता, पृथ्वीप्रमाणे क्षमाशील विद्यायुक्त माता, अग्नीप्रमाणे प्रकाशमान भ्राता असतो तोच सुखी होतो. तसेच ज्याप्रमाणे पूर्ण विद्यावान लोक सन्मार्ग दाखवितात त्याप्रमाणेच विद्याध्ययन करणारे (विद्यार्थी) अध्यापन करणाऱ्यांचा निरंतर सत्कार करतात. ॥ ५ ॥